उसने जो आँखें मिलाई,
वो दिल को घायल कर गयी.
और जब पलकें झुकाई,
तो मुझको पागल कर गयी.
जब बातों का सिलसिला उनसे चला,
तो लगा कि मेरी मंजिल है यही.
जब साथ हम होते थे,
तो वक़्त जैसे थम सा जाता था.
कभी बैठे होते हम पेड़ कि छाओं में,
तो कभी सागर किनारे.
कभी उसका आँचल मेरे चहेरे पर लहराता,
तो कभी साहिल कि लहरें पैरों को छू जाती.
और ऐसा लगता शायद यही जन्नत है,
लेकिन न जाने फिर ऐसा क्या हुआ!
वक़्त ने ऐसी करवट ली,
आज भी मैं बैठा हूँ वहीँ,
सागर के उसी छोर पर,
उसके इंतज़ार में,
पर आज ना उसका आँचल है,
और कुदरत भी शायद हम से खफा है,
very nice and thoughful..
ReplyDeletewell written dear..
achha likha hai.
ReplyDeletebest wishes
@monika and prritiy: thank you..! :)
ReplyDeleteDedicated to me, for my recent f*** up in love... thank you, thank you... ;)
ReplyDeletehaha..hope you liked it! :)
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