Sunday, 27 May 2012

सपना


सपने में मेरे आई थी,
माथे पर एक बिंदिया चमकाई थी.


हवा में आँचल लहराई थी,
पैरों में पायल उसने छनकआई थी.


कानों में उसके बाली थी,
होंटों पर उसके लाली थी.


कातिल उसकी अदाओं ने,
दीवाना मुझे बनाया था. 


उसके चेहरे का लश्कर,
आँखों पर मेरे आया था.


जब देखा तो पता चला,
सूरज क्षितिज तक उठ आया था, टूट गया था मेरा 'सपना'!


पर अब भी,
उसकी जुल्फों के कोहरे में,
ढला मेरा सवेरा था.


अब तो मेरे दिल में,
उसका ही बसेरा था.


अब नहीं है वो मेरे सामने,
पर उस 'सपने' ने,
मेरी सुबह को खूबसूरत बनाया था.

Photograph Credits: Raveesh Photography

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