Sunday 15 July 2012

ज़िन्दगी


ज़िन्दगी की राह का एक और मुक़ाम पूरा हुआ,
कभी खुशियाँ मिली तो कभी ग़म साथ हुआ,
कुछ पुराने चेहरे थे साथ,
तो कुछ नए चेहरों का दीदार हुआ,
किसी ने हंसाया, किसी ने रुलाया,
और किसी  ने दर्द में भी साथ दिया,
पर 'माँ' के आँचल का मुझ पर हमेशा साया हुआ,
फिर सफ़र में मिली एक अनदेखी अनजानी सी 'वो',
जिसका साथ पाकर मुझे भी ज़िन्दगी जीने का एहसास हुआ,
दोस्तों के साथ बीते कुछ खुशनुमा पल,
और मुझे भी दोस्ती का एहसास हुआ,
सालों तक रहेगा ये साथ हमारा,
मेरे दिल को कुछ ऐसा एहसास हुआ,
बस है ये गुज़ारिश छोड़ना ना साथ मेरा,
कि दुनिया कहे मैं सबसे तन्हा हुआ,
अगर हो कोई गिला शिकवा तो भूल जाना,
माफ़ी मांगने को मैं दिल से तैयार हुआ.

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