Friday, 14 September 2012

बचपन


बहुत दिनों से यह बात दिल में थी,
पर कभी कह नहीं पाया.
और आज जब कलम उठाई,
तो सोचा की लिख ही डालूं.

McD और Pizza Hut जाकर बहुत मज़ा आता है,
पर माँ के हाथ की रोटी की बात ही कुछ और थी.

Malls में घूमकर बहुत मज़ा आता है,
पर फॅमिली पिकनिक की बात ही कुछ और थी.

Prison Break देखकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं,
पर कार्टून नेटवर्क की दुनिया की बात ही कुछ निराली थी.

रातों को देर तक जागकर खुश हो जाते हैं,
पर सुबह
7 बजे उठकर स्कूल जाने का मज़ा ही कुछ और था.

यूँ तो Facebook पर हो जाती है दोस्तों से बातें,
पर घर के पीछे वाले पार्क में गप्पे लड़ाने का मज़ा ही कुछ और था.

इस अल्हडपन में लड़कियों को देखकर खुश हो जाते हैं,
पर बचपन में मंदिर की घंटी बजाने का मज़ा ही कुछ और था.

बीनबैग और सोफे पर बैठकर आराम मिलता है,
पर पापा के कंधे पर सर रखकर सोने का मज़ा ही कुछ और था.

चाहे जिंदगी बहुत बदल गई हो,
पर बचपन की वो यादें आज भी लौट आती हैं.

वो बड़े ही सुनहरे दिन हुआ करते थे,
जब जिंदगी एक खुशनुमा शायरी और हम उसके शायर हुआ करते थे
!

2 comments:

  1. Soo true..:)
    My poem on childhood
    http://navanidhiren.blogspot.in/2011/11/bachpan.html

    ReplyDelete

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